डीएमएफ घोटाला मामले में पूर्व कलेक्टरों की भूमिका जांच के दायरे में

डीएमएफ घोटाला मामले में पूर्व कलेक्टरों की भूमिका जांच के दायरे में

रायपुर: 575 करोड़ के डीएमएफ (जिला खनिज न्यास) घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने जांच की रफ्तार बढ़ाई है। करोड़ों रुपये के इस फंड के दुरुपयोग को लेकर कई अहम दस्तावेज ईडी के हाथ लगे हैं। इनमें ऐसे फैसले और भुगतान की जानकारियां शामिल हैं, जिन्हें जिला स्तर पर मंजूरी दी गई थी। लिहाजा अब पूर्व कलेक्टरों की भूमिका भी जांच के दायरे में आ गई है।

जांच एजेंसी के सूत्रों के मुताबिक डीएमएफ फंड से बिना टेंडर के काम आवंटन, तय दर से अधिक मूल्य पर सामग्री की आपूर्ति, अधूरे कार्यों का भुगतान और फर्जी बिलों के आधार पर लेन-देन जैसे गंभीर अनियमितताओं के साक्ष्य मिले हैं। चूंकि डीएमएफ की निगरानी जिला कलेक्टरों के अधीन होती है, इसलिए उनकी जवाबदेही भी तय हो सकती है।

ईडी की जांच का सबसे ज्यादा असर उन सप्लायरों पर पड़ा है जिन्होंने कथित तौर पर अपात्र ठेके लिए या बिना काम किए भुगतान उठाया। कई सप्लायर को समन भेजकर पूछताछ की जा रही है। मोबाइल चैट, बैंक ट्रांजैक्शन और ईमेल रिकॉर्ड के आधार पर उनकी भूमिका की गहराई से जांच हो रही है।

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सप्लायरों की अफसरों से मिलीभगत

जांच एजेंसी को डीएमएफ घोटाले में शामिल करीब 12 से अधिक सप्लायरों के जिला अधिकारियों से मिलीभगत के सबूत मिले हैं। इसके आधार पर सप्लायरों से पूछताछ चल रही है। शक है कि इस घोटाले में राजनीतिक और प्रशासनिक गठजोड़ की भी अहम भूमिका रही है। आने वाले दिनों में कुछ बड़े नामों पर शिकंजा कसने की पूरी संभावना है।

ये है घोटाले के आरोपी

निलंबित आइएएस रानू साहू, आदिवासी विभाग की सहायक आयुक्त रही माया वारियर, कारोबारी सूर्यकांत तिवारी, उपसचिव रही सौम्या चौरसिया,मनोज द्विवेदी,कोरबा डीएनएफ की तत्कालीन नोडल अधिकारी भरोसा राम ठाकुर, तत्कालीन जनपद सीईओ भुनेश्वर सिंह राज, राधेश्याम मिर्झा,वीरेंद्र कुमार राठौर को गिरफ्तार किया गया था, जबकि संजय शेंडे, ऋषभ सोनी और राकेश कुमार शुक्ला फिलहाल गिरफ्त से बाहर हैं।









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