खेती को अगर समझदारी और योजना के साथ किया जाए तो यह किसानों के लिए बहुत मुनाफे का सौदा साबित हो सकती है. यूपी के गोंडा जिले के कई किसान अब पारंपरिक खेती छोड़कर सहफसली खेती की ओर बढ़ रहे हैं. इस खेती में एक ही खेत में एक से अधिक फसलें लगाई जाती हैं, जिससे उत्पादन और आमदनी दोनों बढ़ जाती हैं.
सहफसली खेती यानी एक ही खेत में दो या अधिक फसलों को साथ में लगाना. इसका फायदा यह होता है कि जमीन का पूरा उपयोग हो जाता है, पानी और खाद की बचत होती है और किसान को एक से ज्यादा फसलों से इनकम मिलती है. इसके अलावा, अगर किसी कारण एक फसल खराब भी हो जाए तो दूसरी फसल से नुकसान की भरपाई हो जाती है.
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बैंगन की फसल के साथ किसान हरी मिर्च, टमाटर, प्याज, और गोभी जैसी सब्जियां आसानी से लगा सकते हैं. ये फसलें एक-दूसरे के साथ अच्छी तरह बढ़ती हैं और मिट्टी के पोषक तत्वों का संतुलित उपयोग करती हैं. बैंगन की कतारों के बीच हरी मिर्च के पौधे लगाए जा सकते हैं, जबकि खेत के किनारों पर टमाटर या गोभी की पौध लगाई जा सकती है. इस तरीके से खेत की हर इंच जमीन का उपयोग हो जाता है.
सहफसली खेती शुरू करने के लिए सबसे पहले खेत की अच्छी जुताई करनी होती है. खेत में गोबर की खाद, नीम की खली और जैविक उर्वरक मिलाया जाता है ताकि मिट्टी उपजाऊ बनी रहे. इसके बाद बैंगन की कतारें लगभग 2 फीट की दूरी पर लगाई जाती हैं. इन कतारों के बीच में हरी मिर्च या प्याज के पौधे लगाए जा सकते हैं. अगर टमाटर लगाना है तो उन्हें किनारों पर बांस की सहारा प्रणाली (ट्रेलिसिंग) के साथ लगाया जाता है ताकि पौधे झुकें नहीं.
लल्लू प्रसाद मौर्य बताते हैं कि सिंचाई के लिए ड्रिप सिस्टम सबसे अच्छा माना जाता है. इससे पानी की बचत होती है और पौधों को समान रूप से नमी मिलती है. साथ ही, किसान जैविक कीटनाशक का प्रयोग करें ताकि फसलों को कीटों से बचाया जा सके.
लल्लू प्रसाद मौर्य बताते हैं कि सहफसली खेती की लागत लगभग 25 से 30 हजार रुपये प्रति बीघा आती है. लेकिन फसल तैयार होने पर बैंगन, हरी मिर्च और टमाटर से कुल मिलाकर 1.5 से 2 लाख रुपये तक का शुद्ध मुनाफा आसानी से हो सकता है. सब्जियों की बाजार में हमेशा मांग रहती है, जिससे किसान को अपने उत्पाद की सही कीमत मिल जाती है.
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लल्लू प्रसाद मौर्य बताते हैं कि इस खेती से उनकी आमदनी में पहले के मुकाबले दोगुनी वृद्धि हुई है. साथ ही खेत की मिट्टी भी पहले से अधिक उपजाऊ बन गई है. यह तरीका उन किसानों के लिए खासतौर पर फायदेमंद है जिनके पास सीमित जमीन है और जो कम लागत में ज्यादा मुनाफा चाहते हैं.



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