लेखक-परमेश्वर राजपूत, गरियाबंद : छत्तीसगढ़ सहित देश के कई राज्यों में युवाओं में बढ़ती नशे की लत एक भयावह सामाजिक संकट का रूप ले चुकी है। रोज़ाना शराब पीकर गाड़ी चलाने की घटनाएँ आम हो चली हैं, और इन लापरवाहियों की कीमत कई परिवार अपनी जान गंवाकर चुका रहे हैं। सड़कों पर हो रही दुर्घटनाओं में सबसे अधिक मामले शराब के नशे में वाहन चलाने से जुड़े पाए जा रहे हैं। यह केवल आंकड़ों की बात नहीं, बल्कि मैदान में मौजूद पुलिस, डॉक्टर और परिवहन विभाग के अधिकारी भी स्वीकार करते हैं कि सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला खतरा ‘ड्रिंक एंड ड्राइव’ है, जिसका शिकार सबसे ज्यादा युवा वर्ग हो रहा है।
कस्बों तक शराब दुकानें—सरकार की संवेदनहीन नीति?
सामाजिक संगठन, बुद्धिजीवी और पीड़ित परिवार सालों से मांग करते रहे हैं कि शराबबंदी कम से कम चरणबद्ध तरीके से लागू की जाए, ताकि युवाओं को इस नशे से दूर रखा जा सके। लेकिन इससे उलट, सरकार ने शहरों और बड़े बाजारों के साथ अब छोटे कस्बों और ग्रामीण इलाकों में भी शराब दुकानों का विस्तार कर दिया है। जहां पहले छोटे गाँव-कस्बे अपेक्षाकृत शांत और नशे की पहुँच से दूर थे, वहीं अब हर कुछ किलोमीटर पर शराब दुकानें खुली मिलने लगी हैं। इससे युवा वर्ग की पहुंच और भी आसान हो गई, जिसके गंभीर सामाजिक परिणाम सामने आने लगे हैं—घरेलू विवाद, आर्थिक संकट, अपराधों में वृद्धि और सबसे अधिक सड़क दुर्घटनाएँ।
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कांग्रेस और बीजेपी दोनों की चुप्पी—क्यों नहीं होती शराबबंदी पर गंभीर चर्चा?
राजनीतिक दलों की बात की जाए तो शराबबंदी का मुद्दा हर चुनाव में उठता है, पर सत्ता में आने के बाद यह वादा फाइलों में दफ्न हो जाता है।
कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में शराबबंदी को चरणबद्ध तरीके से लागू करने की बात कही थी, लेकिन ज़मीनी स्तर पर इसका उल्टा ही दिखाई दे रहा है। बीजेपी विपक्ष में रहते हुए शराबबंदी की बात तो करती है, लेकिन सत्ता में रहकर यही दल कई राज्यों में शराब से होने वाली आमदनी पर निर्भर रहा है।
ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों ही दल शराब नीति पर मौन सहमति बनाए हुए हैं। शराब से हर वर्ष अरबों की सरकारी आय होती है, लेकिन इसके बदले समाज जिस भारी कीमत का भुगतान कर रहा है—उस पर कोई गंभीर बहस नहीं होती।
युवाओं पर असर—आने वाली पीढ़ी पर संकट
नशे की लत केवल एक व्यक्ति को नहीं, बल्कि पूरे परिवार को प्रभावित करती है। स्कूल-कॉलेज के बच्चों तक शराब और नशे की पहुंच बढ़ना बेहद चिंताजनक है। विशेषज्ञों का मानना है कि 18 से 30 वर्ष के बीच के युवाओं में शराब सेवन के मामलों में तेज़ वृद्धि दर्ज की जा रही है।
चौंकाने वाली बात यह है कि दुर्घटना में मरने वाले युवाओं का बड़ा हिस्सा ड्रिंक एंड ड्राइव से जुड़े मामलों में पाया गया है। तेज रफ्तार, स्टंट, रात में शराब पीकर बाइक व कार दौड़ाना आज फैशन बन चुका है—और इसका अंत अक्सर दर्दनाक हादसे के रूप में होता है।
समाधान क्या? समाज और सरकार दोनों को जवाब देना होगा
यदि इस संकट पर समय रहते नियंत्रण नहीं पाया गया तो आने वाले वर्षों में इसका प्रभाव और भी भयावह हो सकता है।
शराब बिक्री पर सख्त नियंत्रण,नशाबंदी पर गंभीर राजनीतिक इच्छाशक्ति,शराब दुकानों का ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों से हटाया जाना,युवाओं के लिए जागरूकता अभियान,ड्रिंक एंड ड्राइव के लिए कड़े दंड
सरकारें केवल राजस्व को आधार बनाकर समाज को नशे की दलदल में नहीं छोड़ सकतीं। समय आ गया है जब शराबबंदी पर राजनीति बंद हो और नीति बनना शुरू हो।
निष्कर्ष-
युवाओं का भविष्य शराब के अंधेरे में धीरे-धीरे खोता जा रहा है। सड़क दुर्घटनाओं में हर मौत सिर्फ एक संख्या नहीं—वह किसी परिवार का टूटता सहारा, किसी माँ की उजड़ती दुनिया और किसी बच्चे का भविष्य छिनना है।सवाल सिर्फ इतना है कि क्या हमारी सरकारें और राजनीतिक दल इस दर्द को समझेंगे? या फिर शराब से आने वाला राजस्व आज भी उन आँसुओं से अधिक मूल्यवान है जो हर दिन किसी माँ की आँख से गिरते हैं?



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