बिहार विधानसभा चुनाव में हार परिवार में रार गठबंधन में तकरार ,इंडी गठबंधन की गठरी में छेद है, आपस में मतभेद है, चुनाव जितने से पहले राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं जागृत हो जाती है,विधायक चुनने से ही पहले मुख्यमंत्री पद की लालसा जाग जाती है, बिना बहुमत के कैसे सत्तारोहण होगा? बतौले बाजी से जनता का मन नही जीता जा सकता, जब जनता के मुद्दे गौण हों ,विकास की जगह सिर्फ स्वार्थ हो तो ऐसी राजनीति कैसे जीत दिला पायेगी? जन से परे रहेंगे तो जनमत भी आपसे परे जाएगा, बौद्धिक आतंकवादियों के मंतव्य से आप गंतव्य तक नही पहुँच पाएंगे, बौद्धिक आतंकियों को जीविका दीदियों को दस हजार देना अखर रहा ,हार की वजह यही दिख रही पर ये नही दिख रहा की महागठबंधन को 1 करोड़ अस्सी लाख वोट मिले हैं, क्या इसमें कोई जीविका दीदी नहीं है? फ्री बीज की शुरआत किसने और क्यों की ?हमाम में सभी नंगे हैं, तो फिर ये रोना कैसा? फिर दस हजार के बदले 30 हजार की घोषणा आपने क्यों की? नियत पाक साफ़ है तो फ्री बीज पर संविधान संशोधन कर लीजिये, नैतिकता का वों कौन सा मापदंड है जिसमे सजायाफ्ता अपराधी जेल की जगह राजनीतिक दल का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना ऐश कर रहा, जिनके चुनाव लड़ने पर पाबंदी है , वही राजद का सबसे बड़ा आसंदी है।
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जिनसे घर नही संभल रहा ,जो बेटी का मान नही करते किडनीदान का अहसान नही मानते ,जो बड़ी बहु को न्याय नही दिला पाए ,ज्येष्ठ पुत्र को समझाने की जगह घर निकाला कर अपनी कर्तव्यों की इति श्री कर ली, जिन्हें कुंभ फालतू लगता है हैवोलिन में मजा आता है, ताजिए के सजदे में जिनका सर झुकता है ,उन्हें अब अपने हार का कारण भी पता है ,प्रतिभा से तेजस्वी नेता बने होते तो हार होती दुर्गति नही, मुख्यमंत्री बनने की लालसा और सीटें जीती 25 ,नेता प्रतिपक्ष की मान्यता मिल जाए वही बहुत ,इतना अंतर तो मुंगेरी लाल के भी सपनों में नहीं था ,परिवार वादी पार्टियों के सारे लालों को यही बिमारी है, कि इनके सपने बड़े और ये सब मुंगेरी लाल पर भारी हैं ,चुनाव दर चुनाव हारते रहे पर सबक इनका सिफर है, सर पर चढ़ा बौद्धिक आतंकियों का भुत है ,वोट चोरी का हल्ला है करते पर वोट मालिक खामोश हैं, जनादेश से बनी सरकार को ज्ञाना देश कह देने से सच नही बदल जाएगा,पैसे देकर मीडिया में नेरेटिव चलवा सकतें है पर वों जनमत नही दिलवा सकते,जिन बुद्धजीवियों को कांटें की टक्कर दिख रही थी उन्होंने आपकों काँटों का ताज पहना दिया, उनको काँटों पर बिठाकर पूछिये आपको कैसे बुद्धिहिन बना दिया,स्टूडियो के मुद्दे जमीन में कैसे फुर्र हो गए ,जीत चैनलों की कैसे बिहार में हार में बदल गई।
प्रस्तावक और समर्थक सिर्फ नामाकंन भरवा सकतें हैं जितने के लिए बहुमत की जरूरत होती है, आप प्रस्तावक समर्थक के भरोसे चुनाव में खड़े हो गए, फुलाकर कुप्पा कर दिया आप उड़ गए जमीन से कट गए बहुमत तो दूर जनमत के लायक नहीं बचे, 243 में सिर्फ 25 अपना 10 अपनों का इसे हार कहें या दुर्गति अब बताएं फालतू कौन हैं ? जिन्हें कुंभ में उमड़ा जनसैलाब फालतू लगा आज वही जन -जन के लिए तरस गए पांच साल के लिए पुरे परिवार सहित फालतू हो गए,कभी भार्या के भाल पर जिसने राज लिख दिया, वों लाल के राज के लिए तरस गए ,झूठ की उम्र लम्बी होती नहीं है, गरीबों का मसीहा सजायाफ्ता नही होता ,गरीब गुरबा के घरो में बेहिसाब संपत्तियां नही होती ,समाजवादी क्या नौकरी के बदले जमीन लेता है? गोधरा के अग्निकांड में हाँथ तो आपने भी सेंका था, अग्निस्नान करने वाले कारसेवकों की हत्या पर खूब षडयंत्र रचा था ,कर्म आपका आपको ही कर्मफल दे रहा,बातें गरीबों की काम सिर्फ अपनों का, समाजवाद की नई परिभाषा गढ़ रहे पत्नी के बाद बेटे के लिए बिहार का राज ढूंढ रहे ,बुद्धजीवियों ने बखूबी अपनी दुकान सजाई आपने भी घोटालों की रकम उन्हें किस्तों में पहुंचाई ,फिर हेराल्ड वालों ने आपको नेशनलिज्म सिखाया चंगु मंगू ने मिलकर बिहार को पंगु बनाने की योजना बनाई ,पर बिहार न रुका, न उलझा उसने विकास संग सीधे नाता जोड़ा बुद्धजीवियों के कुतर्को को आपने माना, बिहार ने इंकार कर दिया ,बिहार की हार सबक है गुदड़ी के लाल के लिए ,पहचान अपनी छोड़ कोई व्यक्तित्व बना नहीं पाता, व्यक्तित्वहीन श्रेयहिन हो बेटे को भी राज दिलवा नही पता क्योंकि ---------------------------------------------पूत कपूत तो क्या धन संचय,पूत सपूत तो.....................
चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल की टिप्पणी



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