मुखिया के मुखारी -सूदखोर के बनोगे नाथ ,अपनों को करोगे अनाथ,ये नहीं चलेगा 

मुखिया के मुखारी -सूदखोर के बनोगे नाथ ,अपनों को करोगे अनाथ,ये नहीं चलेगा 

छत्तीसगढ़ के गृह मंत्री के पास ही जेल का भी प्रभार है, और पंचायत भी उन्हीं के अधीन है, गृह की व्यवस्था बिगड़े तो पंचायत अव्यवस्था फ़ैलाने वाले को जेल भेजती है मंत्री जी अपने विभागों के लिए समदर्शी होंगे । छत्तीसगढ़िया और परदेशिया के झंझावातों के बीच नित नई बहस हो रही है, छत्तीसगढ़ क्रांति सेना प्रमुख के गिरफ्तारी की मंशा पुलिस बता रही है,जिन समाजों पर अवांछनीय टिप्पणियाँ हुई थी उन्होंने भी चौक चौराहों पे  खूब जोर अजमाईस की ,बोनसाई को बरगद बनाने और समझाने का कृत्य हुआ, चेष्टा और कुचेष्टा दोनों अभी मंद हैं क्योंकि भूमिगत होना परिस्थितिजन्य शांति का द्योतक है ,पर क्या इससे समस्या का समाधान हो जाएगा, जिस भी दिन गिरफ्तारी हुई क्या छत्तीसगढ़ का राजनीतिक माहौल गर्म नही होगा, यदि छत्तीसगढ़ क्रांति सेना प्रमुख की गिरफ्तारी जायज है तो शांति व्यवस्था बनाएं रखना किसकी जवाबदेही है?  दूसरी तरफ दूसरी सेना है जिसका नाम क्षत्रिय करणी सेना है जो सूदखोर तोमर को बचाने की सारी जद्दोजहद कर रही, हिस्ट्रीशीटर है मतलब उसके अपराधों की लंबी फेहरिस्त है ,फिर भी उसे हस्ती बनाने की पूरी कवायद है, छह साल पहले भी तो तोमर को सड़कों पर घुमाया गया था, तब भी आधार उसका अपराध  था, आज भी वही आधार है, जिन्हें मानवता आज,रोती दिख रही है उन्हें पीड़ितों के आंसू क्यों नहीं दिखे?  प्रबंधन की वों अद्भुत शैली जो ठेले से सीधे कोठी बनवाती हो ,जो गहने की दुकान नर के शरीर पर ही बनवाती हो जिस ताकत से खारुन की पहचान बदलने की कोशिश हुई हो उसमें दम तो है ,पर ये दम आया कहां से?

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भ्रांतियां जो फैलाई जा रही हैं उनका जनक कौन है ? नारी वेदना की जो झलकियाँ दिखाई जा रही हैं क्या यही सच है ? कई नारियों के सुहाग सूद पे खुद अर्पित हो गये, उस वेदना का क्या ?एक की वसूली पच्चीस ,पचास की क्या ये ब्योहर का व्यवहार है, क्या तोमर के अपराधों की जानकारी क्षत्रिय करणी सेना को नहीं है? छत्तीसगढ़ी सामाजिक परिवेश में समाजों के संगठन हैं,1282 ,राहटा दा ,छत्तीसगढ़िया राजपूत समाज का संगठन है क्या उसकी कोई प्रतिक्रिया किसी ने सुनी? छत्तीसगढ़ में किसी अपराधी के खिलाफ कार्यवाही समाज विशेष के खिलाफ कैसे हो गई?  सूदखोरी के दम पर कमाए गए पैसों से यदि कानून को बंधक बनाने की कोशिश होगी तो फिर ये कोशिशों में परिवर्तित होंगी,तोमर के लिए आंदोलन हो सकता है तो फिर अमित बघेल के लिए क्यों नही ? यदि बोनसाई की महत्ता सरकार के लिए है तो बरगद की महत्ता को छत्तीसगढ़ की जनता भी समझती है, यदि करणी सेना को बवाल की छुट है तो छत्तीसगढ़ क्रांति सेना धमाल क्यों नही कर सकती? जेल की ऊँची चार दीवारियों से खबरें छनकर ही आती हैं, क्योंकि वहां खनक सिक्कों की चलती है ,जेलों में पैसों वाली व्यवस्था की कथा सबने सुनी और पढ़ी है जो बाहर छाया है वों अंदर भी छाया ही होगा, जो कानून नही मानता वों जेल के नियमों को धराशायी कर ही रहा होगा जिन्हें सड़क में मानवाधिकार लुटते दिखा उन्हें एक दिन न्यायालय परिसर जरुर जाना चाहिए।

गरीबों के मानवाधिकार का चीरहरण दिख जाएगा ,गरीबों के हाँथ में लगी हथकडियां भी हथकड़ी ही होती है, उनसे उनकी भी प्रतिष्ठा में आघात पहुँचता है ,हाँ उन्होंने सूदखोरी से पैसे नही कमाएं ,इसलिए उनके साथ कोई नही होता है ,समाज तो हिडमा के प्यार में बौराया है पति पत्नी की चिता एक साथ जली इसी में मन लगाया है कुख्यात को प्रख्यात करने की नई विधा ही अब पत्रकारिता है। उग्रवादी भटके हुए नौजवान कहे जाते हों वहां झूठ का चलन सच से ज्यादा है, चिकित्सक जब शपथ लें जान लेने पर आतुर हों तो फिर कहां कोई नियम कायदा भाता है,पल -पल बदलती दुनिया में कैसे हम न बदलें ,बस छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया के भरोसे कैसे जी लें, छुट यदि औरों को है तो फिर हम न कैसे बोलें ?राजनीतिक उम्मीदवारी में भी छत्तीसगढ़ियों को जातीय समीकरण में उलझा दिया जाता है, शहरी सारी सीटों पर बोनसाईयों को प्रत्याशी बनाया जाता है ,छत्तीसगढ़ियों की भी अपनी संस्कृति है ,अपना सामाज है ,कभी रायपुर पुरानी बस्ती ,दुर्ग दानीपारा में जाकर देखिएगा की तन ही छत्तीसगढ़िया मिट्टी से बना है ,आत्मसात करने के लिए सिर्फ मनोयोग चाहिये ,यदि श्रीमान और सरकार समदर्शी हैं तो फिर क्षत्रिय करणी सेना जितनी छुट छत्तीसगढ़ क्रांति सेना को भी चाहिए क्योंकि --------------------- सूदखोर के बनोगे नाथ ,अपनों को करोगे अनाथ,ये नहीं चलेगा ।

चोखेलाल

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मुखिया के मुखारी व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल की टिप्पणी

 









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