मुखिया के मुखारी - सुशासन शब्द नहीं व्यवस्था है 

मुखिया के मुखारी - सुशासन शब्द नहीं व्यवस्था है 

सुशासन की अनुगूँज लिए विष्णु सरकार आई पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार अपने कुकर्मो और अंतर्विरोधों से अलोकप्रिय हो दाऊ दलाल गिरोह से उपमित होकर रुखसत हुई ,सरकार बदल गई पर क्या सुशासन स्थापित हुआ ,जिन्हें नौनिहालों की गणना करनी थी वों अब स्वान की गणना करेंगे उनका स्वभाव जानेंगे 'जिनकों भविष्य में अपने काम का न पता हो वों छात्रों का भविष्य कैसे संवारेंगे? बहुआयामी प्रतिभाओं के स्रोत हैं,हर मर्ज की दवा हैं, हर काम में शासन इन्हें ही जोतता है, क्योंकि ये बुद्धि के साथ बलशाली भी हैं । कर्मी ,सचिव ,मंत्री शिक्षा में प्रतिभा के साथ एक और समानता है ,ये प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था संभालते हैं, पर इनसे अपने बच्चे सरकारी स्कूलों में नही संभलतें ,ये सरकारी स्कूलों में पालक नहीं बनते, इनके बच्चे निजी हैं तो निजी स्कूलों की शोभा ,बनते आधी छोड़ पूरी को धांवें ----तो फिर बालक नहीं स्वान की गणना में लग जावें, भारी भरकम संख्या, वजनी तनख्वाह फिर भी उपलब्धियां सिफर अपनी प्रतिभा पे अपने को ही नही भरोसा ऐसी छत्तीसगढ़ की शिक्षा व्यवस्था।

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स्वास्थ्य का खेल निराला स्वास्थ्य का स्वास्थ्य ही ठीक नहीं है बाकीं व्यवस्था स्वस्थ है बैच पे बैच दवाइयों के रिजेक्ट हो रहे,रिएजेंट पे कमीशन खोरी हो रही, उपकरण धुल खा डब्बों को चिड़ा रहे,अपना वजूद बड़ा बता रहे, कभी श्याम को बांसुरी पसंद थी ,अब श्याम 9 AM को बड़ा बता रहे, तब दारू का शोर था ,अब दवा का जोर है, जोर शोर से घोटाले के रकमों का मिलान हो रहा है ,अधिकारी तब भी बेलगाम थे ,आज भी उसी रथ पर सवार है ,संलिप्तता कितनी भी उजागर हो जाएं कार्यवाही सिफर, भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की फिरकी पर मंत्रियों को नहीं फिकर ,सड़कें उखड़ -उखड़ के बन रही ,बन- बन के उखड़ रहीं, ये सार तो सिर्फ साव साहब को समझ में आता है ,दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों का क्या सड़कें राजधानी में उखड़ जातीं हैं, न्यायधानी में अरपा किनारे निजी भूमि तक जानें करोड़ों की सड़क बन जाती है,राजस्व वाले सर्वस्व डकार जाएं, ऐसा उनका वर्चस्व है, पटवारी से लेकर कलेक्टरों तक भूमि मुआवजे के प्रकरण ही प्रकरण हैं ,बांटा की बांटकर भूमि मुआवजा दिया यक्ष प्रश्न है वर्दी वालों की वर्दी में अरारोट का कलफ है ,वर्दी बड़ी कड़क है, लंगोट ही ढीली पड़ जा रही ,वर्ना व्यवस्था तो पूरी गीली है।

आरक्षक TI ,DSP,IG से उपर तक रंगीनी है ,महिला अस्मिता की स्मृति शेष और कई नई कहानियां हैं ,सट्टे से धन संग्रह संग्राहक ही नही संघारक बन गए, औरों के जाँच की क्या कहें खुद जांचों से घिर गए, नित नए कारनामे हैं ,ये बड़े नाम वालें हैं ,जिस बिरादरी में दागदारों की लंबी फ़ौज हो वों दागियों को ढूंढेंगे ऐसी बानगी अब तक तो एक न देखी है ।बड़े घोटालों के आरोपी अभी तक फरार हैं, कोषाध्यक्ष थे तो कोष सहित रिश्ते दोषरहित निभा रहे 'सालों से भूमिगत हो व्यापार बढ़ा रहे 'अभियोजन का योजन समझ से परे है 'घोटालों के आरोपी जमानत पर बाहर होते जा रहे 'कितने सालों में घोटालों पर फैसला आएगा' न जाने अभियोजन कब न्याय के दिन दिखलायेगा,बदल तो दिया आपने पर क्या अभियोजन को सच में विवेक आएगा' जिद्द जैसी चौपाटी और स्काई वाक को लेकर है क्या वैसी सुशासन के लिए नहीं हो सकती?  बिजली माफ़ ही करना था तो फिर मन को हाफ करके निर्णय क्यों लिया, हाफ दो कदम आगे दो कदम पीछे में तो पांच साल बाद भी चौराहें में खड़े रहेंगे, सुशासन की ऐसी गतिशीलता में क्या जड़वत ही रहेंगे ,सुशासन दावों से नहीं व्यवस्था से कायम होगा, घपले घोटालों की फेहरिस्त लंबी पहले जिन्होंने बनाई थी वों आज भी मंत्रालय की शान है ,आज भी अधिकारों से सर्व शक्तिमान हैं,सतर्कता है बहुत जरुरी वर्ना इतिहास दोहराने में वक्त नही लगता, आप दावें करते रह जाएंगे वों दांव खेल जाएंगे, कथा सुशासन की व्यथा न बन जाएं उससे पहले शीघ्रता करिए दावे नहीं दांव पुरे कारज वाले करिए ,लोकतंत्र में मत तो सबके पास होता है पर बहुमत ही सबकुछ होता है ,अभी बहुमत है तो सुशासन के लिए सबकुछ करिए, क्योंकि ----------------------- सुशासन शब्द नहीं व्यवस्था है ।

चोखेलाल

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मुखिया के मुखारी व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल की टिप्पणी









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