ट्रैक पर चली थी ट्रेन, स्टेशन पहुंचा सिर्फ इंजन — और रैक हो गया हवा! 43 साल बाद NASA की नज़र पड़ी और दुनियाभर की एजेंसियों में मचा हड़कंप

ट्रैक पर चली थी ट्रेन, स्टेशन पहुंचा सिर्फ इंजन — और रैक हो गया हवा! 43 साल बाद NASA की नज़र पड़ी और दुनियाभर की एजेंसियों में मचा हड़कंप

जिस तरह बरमूडा ट्राएंगल ने दुनिया में अनगिनत रहस्यों को जन्म दिया, कुछ वैसा ही एक रहस्य भारत की पटरियों पर भी छुपा बैठा था- एक ऐसी ट्रेन का रहस्य, जो दशकों तक किसी को दिखाई ही नहीं दी।न किसी स्टेशन ने उसकी एंट्री दर्ज की, न किसी कर्मचारी को उसकी याद रही और जब 43 साल बाद अचानक अमरीका की NASA की नज़र उस पर पड़ी, तो भारत से लेकर रूस और चीन तक की सुरक्षा एजेंसियां हिल गईं। यह कहानी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट जैसी लगती है, लेकिन यह घटना भारतीय रेलवे की फाइलों में वर्षों तक दबी रही- जब तक कि एक दिन अंतरिक्ष से आई तस्वीरों ने सबको चौका नहीं दिया।

ट्रैक पर चली थी ट्रेन, स्टेशन पहुंचा सिर्फ इंजन — और रैक हो गया हवा! 16 जून 1976 की सुबह मालगाड़ी अहमदनगर से तिनसुकिया की ओर रवाना हुई। रूट पर तेज बारिश हो चुकी थी और तिनसुकिया स्टेशन पर जगह न होने के कारण लोकोपायलट ने रैक को कुछ दूरी पर रोक दिया। वह सिर्फ इंजन लेकर स्टेशन गया, इसलिए कि ताकि मौसम सुधरते ही वापस जाकर रैक जोड़ लेगा। लेकिन उस दिन बारिश थमने का नाम ही नहीं ले रही थी—और वहीं से शुरू हुआ एक ऐसा खेल, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। बाढ़ आई, ट्रैक बहा… और रेलवे 'भूल' गया कि उसकी एक पूरी ट्रेन जंगल में छूटी पड़ी है। लोग ट्रैक दुरुस्त करने और बाढ़ की तबाही से निपटने में जुटे रहे और इसी भागदौड़ में एक मालगाड़ी—पूरी की पूरी—रेलवे के रिकॉर्ड से ही गायब हो गई। दशकों बीत गए… पर किसी को याद ही नहीं रहा कि कहीं एक रैक लापता पड़ा है।

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43 साल बाद NASA की नज़र पड़ी और दुनियाभर की एजेंसियों में मचा हड़कंप लेकिन फिर दिसंबर 2019 को NASA एशिया-अफ्रीका क्षेत्र की जंगलों की निगरानी कर रहा था, तभी तिनसुकिया के एक जंगल में उपग्रह कैमरों ने एक संदिग्ध आकृति देखी। अमेरिकी विशेषज्ञों को शक हुआ—क्या भारत ने दूरदराज घने जंगलों में कोई बड़ी मिसाइल छिपाई है? तुरंत तस्वीरें साझा की गईं। रूस और चीन की खुफिया एजेंसियां भी सक्रिय हो गईं। भारत भी चौकन्ना हुआ—आखिर इन जंगलों में ऐसा क्या है, जिस पर सुपरपावर देश निगाहें गड़ाए बैठे हैं? एजेंसियां पहुंचीं और खुला राज—यह मिसाइल नहीं, 1976 में खोई हुई मालगाड़ी थी। भारत की खुफिया और रेलवे जांच टीम जब मौके पर पहुंची, तो उन्हें घने झाड़ियों और जंगलों के बीच पूरी ट्रेन का रैक मिला—जंग खाया, झाड़ियों में दबा हुआ। वर्षों तक वह जगह इंसानों से लगभग कट चुकी थी—सांप, कीड़े और जंगली जानवरों का इलाका बन चुका था। न ट्रैक बचा था, न किसी को याद था कि यहां मालगाड़ी छोड़ी गई थी। और ड्राइवर? वह तो घटना के कुछ ही महीनों बाद ऑस्ट्रेलिया जा चुका था।

रेलवे की सफाई- ऐसा कोई रैक मिला ही नहीं 2020 में रेलवे ने आधिकारिक तौर पर कहा कि उनके पास ऐसी किसी लापता ट्रेन मिलने की पुष्टि नहीं है। हालांकि कई रिपोर्टों में दावा किया गया कि एजेंसियों ने उस जगह एक पुराना रैक होने की बात जरूर स्वीकार थी- बस उसके पिछली कहानी को अजीब, रहस्यमय और लगभग अविश्वसनीय बताया गया।









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