बेमेतरा टेकेश्वर दुबे : जिले में धरती माता बचाओ अभियान के अंतर्गत कृषि विभाग द्वारा किसानों को जागरूक करने का सतत प्रयास जारी है। इसी कड़ी में सेवा सहकारी समिति कंतेली में एक जागरुकता कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें पराली प्रबंधन और इसके वैज्ञानिक उपयोग पर विस्तृत जानकारी दी गई। इस कार्यक्रम में उपसंचालक कृषि, जिला बेमेतरा श्री एस.आर. साहू, सहायक संचालक कृषि विजय टंडन, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी बेमेतरा राजेश वर्मा तथा ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी, क्षेत्र डूंडा उपस्थित रहे। उपसंचालक कृषि ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि पराली जलाना न केवल खेती के लिए हानिकारक है, बल्कि यह पर्यावरण और मानव जीवन पर भी गंभीर दुष्प्रभाव छोड़ता है। पराली जलाने के नुकसान बताए गए, कार्यक्रम में किसानों को बताया गया कि पराली जलाने से खेतों में मौजूद सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं, जो मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।वातावरण में कार्बन मोनोऑक्साइड, मीथेन व अन्य हानिकारक गैसें फैलती हैं, जिससे वायु गुणवत्ता खराब होती है। मानव शरीर पर श्वसन रोग, आँखों में जलन, एलर्जी व अस्थमा जैसी बीमारियाँ बढ़ने का खतरा रहता है। पशु-पक्षियों व जीव-जंतुओं के प्राकृतिक आवास पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। मिट्टी की प्राकृतिक संरचना प्रभावित होती है, जिससे दीर्घकाल में फसल उत्पादन में कमी आती है।
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पराली से खाद बनाने की सलाह
उपसंचालक कृषि ने किसानों को पराली को जलाने के बजाय कम्पोस्ट खाद तैयार करने की सलाह दी, जिसे खेतों में उपयोग कर लागत कम की जा सकती है और मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ती है। उन्होंने बताया कि सरकार द्वारा पराली प्रबंधन हेतु विभिन्न लाभकारी योजनाएँ भी संचालित की जा रही हैं, जिनका किसानों को अधिक से अधिक लाभ लेना चाहिए। कार्यक्रम के अंत में अधिकारियों ने किसानों से अपील की कि वे धरती माता बचाओ अभियान से जुड़कर पराली न जलाने की शपथ लें और अन्य किसानों को भी इसके लिए प्रेरित करें, ताकि पर्यावरण संरक्षण और सतत कृषि को बढ़ावा दिया जा सके। यह जागरूकता कार्यक्रम किसानों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुआ और पराली प्रबंधन की दिशा में सकारात्मक पहल के रूप में उभरा।



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