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डमी राइस मिलों का खेल

डमी राइस मिलों का खेल

रायगढ़ :  क्या वजह है कि छह महीने की क्षमता से कम धान उठाने के बावजूद समय पर राइस मिलर चावल नहीं दे पाते? इसके पीछे एक वजह डमी राइस मिलों का पंजीयन है। इन डमी राइस मिलों का उपयोग धान ज्यादा लेने और स्टेक आवंटित करने के लिए हो रहा है। समय पर कस्टम मिलिंग करने वाले राइस मिलर्स को प्रोत्साहन राशि के रूप में करोड़ों रुपए दिए जाते हैं। मिलिंग चार्जेस के अलावा यह भुगतान होता है। राइस मिलर्स के पास एक परिसर में एक से अधिक मिलों का पंजीयन होता है लेकिन उतनी इकाइयां उत्पादनरत नहीं होतीं। रायगढ़ एवं सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले में अनेक डमी राइस मिल पंजीकृत हैं। इनमें धान नहीं कूटा जाता बल्कि यह सिर्फ दिखाने के लिए होती हैं। उदाहरण के लिए एक मिलर के पास दो वास्तविक मिलें और एक डमी राइस मिल है तो वह तीन मिलों के लिए पंजीयन करवाएगा और इनकी क्षमता के बराबर धान का डीओ ले लेता है। एफसीआई और नान में तीन मिलों के नाम पर स्टेक आवंटित होते हैं। उत्पादन सिर्फ दो यूनिट से होता है।

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सिर्फ शासन से धान एवं एफसीआई से विंग्स में स्टेक प्राप्त करने के लिए डमी राइस मिलों का पंजीयन कराया जाता है। ऐसी मिलों से मिलिंग नहीं होती। सहयोगी राइस मिलों में मिलिंग कर चावल जमा कराया जाता है। यही नहीं बैंकों से बैंक गारंटी प्राप्त करने के लिए भी ऐसी सहयोगी राइस मिलों का समूह बनाकर बैंक से स्वीकृत बीजी लिमिट की बैंक गारंटी किसी भी नाम पर प्राप्त की जाती है।  बैंक प्रबंधन को इसकी पूरी जानकारी होती है। ऐसे राइस मिलों के ग्रुप की पहचान आसानी से की जा सकती है। सबसे बड़ी बात इन मिलों की बिजली खपत और मिलिंग में समानता ही नहीं है। गलत तरीके से प्रोत्साहन राशि लेने वाले मिल संचालकों पर कार्रवाई नहीं होती।

बिजली खपत जांचने में लापरवाही
डमी राइस मिलों का पंजीयन निरस्त करने के बजाय इनको प्रोत्साहन राशि का भुगतान होता है। मार्कफेड और खाद्य विभाग इसकी जांच ही नहीं करते। रायगढ़ जिले में अरवा मिलिंग के लिए 111 और उसना के लिए 16 मिलों का पंजीयन हुआ है। कस्टम मिलिंग बिल का भुगतान करने और पंजीयन के पहले बिजली खपत की जांच ही नहीं की जाती। जितने चावल की मिलिंग की जाती है, उस अनुपात में मिल नहीं चलती। बिजली बिल को ऑनलाइन बिलिंग मॉड्यूल से लिंक करने पर असलियत सामने आ जाएगी।

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